क्या आप भी ज्यादा सोचने की आदत से परेशान है जानिए उपाय (ky aap bhi jayda sochne ki aadat se pareshaan h janiye uppay in hindi)

नमस्कार,
        
             दोस्तों हम में से कई लोग ऐसे होते हैं जो अपनी ज्यादा सोचने की आदत से परेशान होते हैं। जब भी वह कोई कार्य को सार्वजनिक रूप से करते हैं तो उनके मन में हमेशा एक डर बना रहता है कि जो लोग मुझे देख रहे हैं वह मेरे बारे में क्या सोचेंगे इत्यादि।


ज्यादा सोचने की आदत से किस प्रकार बचा जाए ? ज्यादा सोचने की आदत से बचने का उपाय क्या है?



आज के इस लेख के अंतर्गत हम आपको एक कहानी के माध्यम से ज्यादा सोचने की आदत से किस प्रकार बचा जाए ? ज्यादा सोचने की आदत से बचने का उपाय क्या है? इस विषय पर बात करेंगे तो चलिए चलते हैं हमारी कहानी की ओर ।

ज्यादा सोचने की आदत

(Jayda sochne ki aadat)


एक समय की बात है जब राज्य में एक बहुत ही बुद्धिमान व पराक्रमी सम्राट रहा करता था। उसकी प्रजा उससे बहुत खुश और संतुष्ट थी। पूरा राज्य सम्राट की प्रशंसा करता था। सभी लोग उसे अपने राज्य का अब तक का सबसे महान सम्राट समझते थे।




उस सम्राट का एक बेटा भी था। जो कि अपने पिता की तरह महान बनना चाहता था। लेकिन श्रेष्ठ व अच्छा उत्तराधिकारी बनने की कोशिश में वह अक्सर कुछ ना कुछ भूल या गलती कर बैठता था।

तथा गलती हो जाने के बाद वह यह सोचता रहता है कि पता नहीं लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे और खुद को कोसता रहता था। वह अपना ज्यादातर समय इसी चिंता में बिता देता था कि लोग क्या कहेंगे। अपनी इसी आदत की वजह से वह कई बार परेशान और हताश हो जाता था।

उसी राज्य में एक बहुत ही प्रसिद्ध संत रहा करते थे। जो कि अपनी बुद्धिमत्ता से लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए जाने जाते थे। उनके बहुत से शिष्य भी थे। राजकुमार को जब उनके बारे में पता चला तो वह भी अपनी समस्या का समाधान जानने के लिए उनके पास जा पहुंचे।




संत ने ध्यान पूर्वक राजकुमार की बात को सुना तब राजकुमार ने अंत में कहा कि आप मुझे कोई ऐसा तरीका बताइए जिससे मैं अपने मन को वश में कर सकूं और अपने मन को शांत कर सकूं तथा अपनी इस ज्यादा सोचने की आदत से मुक्ति पा सकूं।

तब संत ने राजकुमार से कहा कि यह काम बड़ा कठिन है क्या आप इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं? तब राजकुमार ने घमंड के साथ कहा कि मैं इसके लिए कोई भी कीमत चुका सकता हूं आखिर मैं सम्राट का पुत्र हूं।

तब उस संत ने कहा कि तुम गलत समझ रहे हो मैं धन के विषय में बात नहीं कर रहा हूं। बल्कि मैं तो तुम्हें उस काम का मूल्य चुकाने के लिए कह रहा हूं जो मैं तुम्हें अब दूंगा और तुम्हें बिना प्रश्न पूछे उस कार्य को करना पड़ेगा। क्या तो राजकुमार आप उस कार्य को करने के लिए तैयार हैं?




राजकुमार ने कहा मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं। तब उस संत ने राजकुमार से कहा कि तुम्हें अकेले बाजार जाकर कबाड़ी की दुकान से कुछ लोहा खरीद कर लाना होगा।

तब वह राजकुमार बिना कुछ प्रश्न किए बाजार की तरफ चल पड़ा। जो राजकुमार आज तक बिना रथ के कभी बाजार नहीं गया उसे पैदल अकेले बाजार जाने में बहुत शर्म महसूस हो रही थी।




बाजार की तरफ निकलते ही उसके मन में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था। वह सोचने लगा लोग मेरे कपड़ों से मुझे पहचान लेंगे। पता नहीं लोग क्या सोच रहे होंगे कि सम्राट का पुत्र होकर पैदल बाजार आया है। लोग पीठ पीछे मेरी हंसी उड़ाएंगे और पता नहीं मेरे बारे में कैसी कैसी बातें करेंगे।

इससे अच्छा तो मुझे उस संत की बातों में आना ही नहीं था। ऐसा सोचते हुए राजकुमार वह कबाड़ी की दुकान पर पहुंच गया तथा वहां से जल्दी-जल्दी, हड़बड़ाहट के साथ लोहा खरीदने लगा।

कबाड़ से लोहा खरीदने के बाद राजकुमार के कपड़े भी थोड़े गंदे हो गए थे। तब तो वह और ज्यादा सोचने लगा और जल्दी - जल्दी चल कर उस संत के पास वापस आ गया।

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संत उसकी घबराई हुई हालत देख कर मुस्कुराए। इसके बाद उस संत ने कहा कि अब तुम्हें यह लोहा लेकर शहर के दूसरे हिस्से जहां पर एक लोहार की दुकान है वहां जाना है और इस कबाड़ के लोहे के टुकड़े को पिघलाकर उसकी एक तलवार बनानी है।

राजकुमार बिना मन से उस लोहार की दुकान की तरफ बिना कोई प्रश्न किए चल पड़ा। उसके मन में पुनः कई विचार आने लगे।

वह सोचने लगा यदि उसके पिताजी को पता चलेगा तो क्या होगा? कहीं लोग यह सोच रहे हो कि पिताजी ने मुझे महल से निकाल दिया है? साथ ही साथ राजकुमार खुद को भी कोसता जा रहा था।

कि क्यों मैं अपने आप को हर बार इस तरह की उलझन में फंसा लेता हूं। इस प्रकार सोचते हुए वह लोहार की दुकान में पहुंच जाता है।

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इसके बाद संत के कहे अनुसार वह खुद ही उस लोहे को पिघलाता है और फिर उसे सांचे में ढालकर उससे एक तलवार का निर्माण करता है। खुद के हाथों से बनी हुई तलवार को देखकर वह बहुत प्रसन्न हो जाता है।

अचानक तलवार को देख वह महसूस करता है कि जब वह तलवार बना रहा था तब उसके दिमाग में या मन में शिकायत के कोई भी विचार नहीं आ रहे थे। वह खुशी मन से तलवार लेकर उस संत के पास वापस आने लगता है।

इस बार लौटते वक्त उसका मन प्रसन्न व शांत था। उस राजकुमार ने उस तलवार को संत के चरणों में रख दिया।
तलवार देखकर संत ने कहा राजकुमार इस बार तुम्हें खुशी महसूस हो रही होगी।

यह तलवार तुम्हारे घमंड की है यह सुनकर राजकुमार चौक गया पर वह कुछ समझा नहीं तब संत ने उसे आखिरी काम करने के लिए कहा।

             


संत ने राजकुमार से कहा कि पुनः बाजार जाओ और पूछो क्या बाजार में किसी ने तुम्हें देखा और यदि देखा तो उन्होंने तुम्हारे बारे में क्या सोचा ?

राजकुमार वापस बाजार गया और उसने बहुत से लोगों से पूछा कि क्या आपने थोड़ी देर पहले मुझे यहां देखा है ? तब ज्यादातर लोगों का जवाब नहीं था।

राजकुमार ने बाजार के सबसे पहले दुकानदार से पूछा तो उसने कहा हां मैंने आपको देखा तो था किंतु सुबह दुकान में बहुत से काम व ग्राहकों के आने जाने के कारण मेरे पास ज्यादा कुछ सोचने का समय नहीं था।

इसलिए बस आपको देखा और अपने काम में लग गया। इसी प्रकार अन्य लोगों से पूछने पर पता चला कि किसी ने भी राजकुमार व उसकी घबराहट की ओर ध्यान नहीं दिया।

बाजार के लोगों से इस तरह की बातें सुनकर राजकुमार को बहुत सुकून महसूस हुआ। वह खुशी से झूमता हुआ संत के पास पहुंचा और उन्हें सारी बात बताई। संत ने गंभीर होकर कहा आज इस घटना से तुमने तीन चीजें सीखी।
 
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1). हम खुद अपनी कमियों व गलतियों को जितना गहराई से देखते है उतनी गहराई से उन्हें और कोई नहीं देखता है। हम सबको अपने दुख, अपनी कमियां सबसे बड़ी लगती है और हमें लगता है कि सबका ध्यान हमारी तरफ ही है और सब हमारे बारे में ही सोच रहे हैं।

सबका ध्यान हमारी कमियों की तरफ ही है। जबकि असल में कोई किसी के बारे में नहीं सोचता। किसी के पास इतना समय नहीं है और यदि समय हो भी तो सभी अपने बारे में ही सोचते रहते हैं। इसलिए इस बात की चिंता करना मूर्खता है कि कोई हमारे बारे में सोच रहा है।

2). दूसरी सीख यह है कि हम खुद ही हमारे सबसे बड़े आलोचक हैं। हम खुद ही हमारे अंदर कमियां निकालते रहते हैं, खुद को दोष देते रहते हैं तथा अपनी कमियों और गलतियों के बारे में सोच-सोच कर उन्हें इतना बड़ा बना लेते हैं जितनी वह असल में नहीं है।

और फिर हम ज्यादा सोचने की आदत की शिकार हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि लोग आपके बारे में बातें नहीं करते या आपकी बुराई नहीं करते लेकिन जो ऐसा करते हैं वह खुद किसी काम के नहीं होते। इसलिए ऐसे लोगों की बातों से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।

3). तीसरी सीख यह है कि जब भी तुम्हारे मन में विचारों का तूफान उठने लगे और तुम्हारा मन अशांत हो जाए तो मन मे उठने वाले बेलगाम विचारों को दबाने और उनसे लड़ने की बजाय खुद को किसी कलात्मक काम में लगा दो।


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खुद किसी ऐसे काम में लग जाओ जिसे तुम्हें अपने हाथों से करना पड़े। क्योंकि ऐसा करने से तुम्हारी सारी मानसिक शक्ति एक दिशा में आ जाएगी और थोड़ी ही देर में तुम शांत महसूस करने लगोगे। इससे तुम्हारा पूरा दिन बर्बाद होने से बच जाएगा।

इस कहानी के माध्यम से जो तीन सीखे हम सभी को मिली है उन्हें हम भी अपने जीवन में अपनाकर ज्यादा सोचने की आदत से बच सकते हैं। इस कहानी के माध्यम से मिलने वाली तीनों सीख ही ज्यादा सोचने की आदत से बचने का उपाय है।


तो दोस्तों आशा करती हूं क्या आप भी ज्यादा सोचने की आदत से परेशान है इस पर आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।

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