नमस्कार,
दोस्तों मनुष्य अपनी इंद्रियों नाक, कान, जीभ आदि को तो अपने वश में रख सकता है, परंतु मनुष्य के लिए अपने अशांत मन को शांत रखना व वश में रखना बहुत ही कठिन कार्य है।
कुछ लोग ध्यान, मेडिटेशन तथा सकारात्मक विचार आदि के द्वारा अपने शांत मन को शांत रखने की पूरी कोशिश करते हैं, परंतु कुछ ही लोग ऐसा करने में सफल हो पाते हैं।
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि अशांत मन को शांत कैसे रखा जाए ? अशांत मन को शांत रखने का क्या उपाय है? आदि के बारे में।
तो चलिए हमारे आज के इस लेख की शुरुआत हम एक कहानी के माध्यम से करते हैं।
कहानी (story)
एक बार गौतम बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक नदी के किनारे से गुजर रहे थे। शाम का समय था। कुछ ही समय पश्चात सूर्यास्त होने वाला था। तभी गौतम बुद्ध व उनके शिष्यों की नजर नदी के पास पड़ी गीली मिट्टी से छोटे-छोटे घर बना रहे बच्चों पर पड़ी।
वह बच्चे गीली मिट्टी से घर बनाते समय इतने प्रसन्न थे कि मानो उन्हें सब कुछ मिल गया हो और उन्हें अब किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है। गौतम बुद्ध व उनके शिष्य यह नजारा देख रहे थे।
तभी एक बच्चे का पेर दूसरे बच्चे के बनाए हुए घर से टकरा गया और उस बच्चे के घर का आकार बिगड़ गया। तब वह बच्चा उस घर बिगाड़ने वाले बच्चे पर चिल्लाने लगा।
वह बच्चे अपनी माता के साथ आए थे जो उस समय कपड़े धो रही थी। कुछ समय पश्चात उनकी माताएं कपड़े धो कर वापस आ जाती है और उन बच्चों से कहती हैं कि चलो बच्चों अब घर चलो अब शाम हो गई है।
इतना सुनते ही सभी बच्चे अपने ही बनाए हुए घर को खुद ही तोड़ने लगते हैं। जो बच्चे थोड़ी देर पहले तक मेरा घर, तेरा घर कर रहे थे। वे सभी उन मिट्टी से बनाए हुए घरों को तोड़कर एक दूसरे के साथ चले गए।
जब वह बच्चे उन मिट्टी के घरों को अपना घर समझ रहे थे। तब वे आपस में लड़ रहे थे। जैसे ही उन बच्चों को पता चला रात होने वाली है और असली घर जाने का समय आ गया है। तो बच्चों का मिट्टी के घर के प्रति मोह समाप्त हो गया और उन्होंने खुद ही कूद-कूद कर उन घरों को तोड़ दिया।
इस घटना को महात्मा गौतम बुद्ध व उनके शिष्य ध्यान से देख रहे थे। घर जाते हुए बच्चों को देखकर गौतमबुद्ध मुस्कुराने लगे। तब सभी शिष्यों ने महात्मा गौतम बुद्ध के मुस्कुराने का कारण पूछा।
गौतम बुद्ध ने कहा ठीक ऐसा ही हमारा जीवन भी है। जिस इंसान को निश्चित तौर पर यह पता होता है कि मरना ही है,रात होनी ही है,आज नहीं तो कल अपने असली घर वापस जाना ही है। उस इंसान का इस संसार के प्रति सारा मोह सारा रस समाप्त हो जाता है।
तो दोस्तों अब आप समझ ही गए होंगे कि मन को शांत रखने के लिए क्या किया जाए। दोस्तों यदि आप अपने जीवन को इस नजरिए के साथ देखते हैं कि हमें भी एक दिन हमारे असली घर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाना है तो दुनिया का कोई भी दुख, कोई भी परेशानी आपके मन को अशांत नहीं कर पाएगी।
आपके मन का अशांत होने का केवल एक ही कारण है कि आप सत्य को नहीं देखना चाहते हैं। सत्य क्या है? सत्य यह है कि खुशी और आनंद हमारे अंदर है किंतु हम उसे बाहर की चीजों व दूसरे लोगों में देखते रहते हैं और उदास होते रहते हैं।
सत्य यह है कि खुशी उसमें नहीं जो हमें मिलेगा बल्कि उसमें है जो कि पहले से हमारे पास है। सत्य है कि जीवन बिता जा रहा है और समय हाथ से निकला जा रहा है। फिर भी हम कुछ नहीं कर रहे हैं और इसीलिए हमारा मन अशांत है।
तो दोस्तों अशांत मन को शांत रखने के लिए अपने जीवन को देखने के नजरिए में बदलाव कीजिए। मृत्यु को अंतिम सत्य मानकर अपने हर क्षण को खुशी के साथ जीने में व्यतीत करे।
मुझे आशा है कि आप भी इस तरह के बदलाव के साथ मन को शांत रखने की कोशिश में सफल हो पाएंगे।
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