नमस्कार,
दोस्तों आज हम एक बहुत ही बड़े सवाल जो कि हर दूसरे व्यक्ति के द्वारा पूछा जाता है के बारे में बात करेंगे। जी हां, दोस्तों यह सवाल हैं कर्म बड़ा या भाग्य (karma badha ya bhagya) ?
बहुत से ऐसे महान ज्ञानी संतो ने कर्म तथा भाग्य की अलग-अलग व्याख्या की है। कर्म की व्याख्या करते हुए तुलसीदास जी ने लिखा है "कर्म प्रधान विश्व करि राखा" अर्थात यह विश्व कर्म प्रधान हैं। यहां पर कर्म का अधिक महत्व है।
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कर्म बड़ा या भाग्य ? |
भगवत गीता में भी श्री कृष्ण ने कर्म की महिमा बताते हुए कहा है कि "जो व्यक्ति कर्म करता है वह मुझ को प्रिय है " किंतु कुछ संतजनों जैसे कबीरदास जी आदि जो भाग्य में विश्वास रखते हैं उनका कहना है कि "जो भाग्य में है उससे अधिक किसी को नहीं मिलता है" या हम कुछ लोगों को ऐसा कहते सुन सकते हैं कि जो भाग्य में लिखा है उसे हम बदल नहीं सकते तो फिर कर्म क्यों करें ? तो आइए जानते हैं कर्म बड़ा या भाग्य (karma badha ya bhagya) ?
भाग्य क्या है ?
(Bhagya ky h in hindi)?
कर्म और भाग्य में कौन बड़ा है यह जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर भाग्य क्या है (bhagya ky h) ? भाग्य निर्माण कैसे होता है (bhagya ka nirman kese hota h) ? दोस्तों हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। हिंदू धर्म के हिसाब से आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। इसका उल्लेख भगवत गीता में भी मिलता है।
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व्यक्ति के द्वारा इस जन्म के संचित कर्म ही अगले जन्म के लिए भाग्य (bhagya) का कार्य करते हैं। संचित कर्म अच्छे या बुरे किसी भी प्रकार की हो सकते हैं। आइए अब इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
आप इस जन्म में जैसे कार्य करते हैं अर्थात अच्छे जैसे दान, पुण्य, दूसरों की मदद करना आदि तो यही कर्म जब तक आप जीवित हैं तब तक तो आपकी सहायता करेंगे ही। औऱ जो बचे हुए कर्म है यदि आप मृत्यु को प्राप्त होकर अगले जन्म को प्राप्त करते हैं तो जो कर्मों का फल आपको इस जन्म में नहीं मिल पाया है वह कर्मों का फल या संचित कर्म आपके अगले जन्म में के लिए भाग्य का कार्य करते हैं।
यदि आप के संचित कर्म अच्छे थे तो आपका भाग्य अच्छा है और यदि आप के संचित कर्म बुरे थे तो आपका भाग्य बुरा होता है।
कर्म क्या है ?
(Karma ky h in hindi)?
व्यक्ति की हर एक गतिविधि कर्म (karma) कहलाती है जैसे व्यक्ति का सोचना, खाना, कार्य करना, किसी के लिए अच्छा करना या बुरा करना आदि ।
भगवत गीता के अनुसार कर्म बड़ा या भाग्य
(Bhagavad Gita ke anusar Karma badha ya bhagya in hindi.)
भगवत गीता के अनुसार कर्म बड़ा या भाग्य इसे समझने के लिए सबसे पहले हम आपको एक कहानी सुनाते हैं। एक विद्यालय में दो विद्यार्थी अजय व विजय पढ़ाई करते थे। अजय बहुत मेहनती था। वह अच्छे से पढ़ाई करने के बाद भी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने में असमर्थ था।
जबकि विजय नकल करके पास होने व भाग्य में विश्वास रखने वाला विद्यार्थी था। अजय और विजय धीरे-धीरे अच्छे दोस्त बन गए। अजय भी मेहनत के स्थान पर भाग्य में विश्वास करने लगा। किंतु जब परीक्षा हुई तो अजय, विजय के जैसे नकल नहीं कर पाया और वह फेल हो गया।
जब उनके अध्यापक को इस बात का पता चला कि अजय फेल हो गया है तब अध्यापक ने उन्हें समझाया कि क्या तुमने कभी बैंक के लॉकर का इस्तेमाल किया है ? बैंक लॉकर दो चाबीयो की मदद से खुलता हैं। एक चाबी उपभोक्ता के पास होती है तथा दूसरी चाबी बैंक के मैनेजर अपने पास रखता है।
ठीक इसी प्रकार हमारा जीवन भी दो चाबीयो अर्थात भाग्य तथा कर्म की चाबी पर निर्भर होता है। तथा बैंक मैनेजर की भूमिका ईश्वर अर्थात भगवान निभाता है। हमें अपने जीवन में अपने कर्म रूपी चाबी का इस्तेमाल करते रहना चाहिए क्या पता कब ईश्वर अपनी भाग्य रूपी चाबी का इस्तेमाल करें और हम सफल हो जाए।
वहीं दूसरी ओर हो सकता है परमात्मा अपनी भाग्य रूपी चाबी लगा रहा हो, पर हम अपनी कर्म रूपी चाबी का इस्तेमाल ही ना कर रहे हो और हमारी सफलता का ताला खुल ही ना पा रहा हो।
गीता के अनुसार भाग्य भी कर्मों से ही बनता है जो कि पिछले जन्मों का कर्म अर्थात संचित कर्म होता है। एक व्यक्ति अमीर घर में पैदा होता है, वही कोई गरीब घर में यह सब उसके पिछले जन्मों के कर्म के आधार पर ही तय होता है।
भगवत गीता के अनुसार कर्म का फल तो मिलता ही है। तो अब आप समझ ही गए होंगे कि कर्म तथा भाग्य साथ-साथ चलते हैं। एक के बिना दूसरा महत्वहीन है। इसलिए कर्म और भाग्य दोनों का ही जीवन में होना बहुत जरूरी है।
आशा करती हूं भगवत गीता के अनुसार कर्म बड़ा या भाग्य
(Bhagavad Gita ke anusar Karma badha ya bhagya.) पर आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी।
धन्यवाद
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