प्रकृति में कर्मों के 8 नियम (Prakriti Mein Karmon ke 8 Niyam in hindi)

 नमस्कार,


         दोस्तों हमारी जिंदगी में कुछ सवाल अक्सर उठते हैं ऐसा क्यों ? क्यों किसी को मेहनत का फल नहीं मिलता ? कुछ लोग बुरे कर्म करते हैं फिर भी उनकी जिंदगी अच्छे से चल रही है ? मैं क्या करूं ? क्या ना करूं ? आदि।

हम सभी लोग अपनी जिंदगी में इन प्रश्नों के उत्तर कई बाहर ढूंढते रहते हैं। आज के इस लेख में हम बात करेंगे उन 8 कर्मों के नियम के बारे में जो प्रकृति के द्वारा या ब्रह्मांड के द्वारा बनाए गए हैं। यह प्रकृति के 8 नियम आपको आपके जीवन को सफल बनाने में आपकी मदद करेंगे।

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यदि आप प्रकृति के इन नियमों को समझकर जान लेते हैं तो निश्चित तौर पर आपका जीवन खुशियों से भर जाएगा तो चलिए शुरू करते हैं प्रकृति के कर्मों के 8 नियमों के बारे में (prakriti ya bramhand k karmo k 8 niyam)  ।


1.) महानता का नियम (The Great Law)


कर्मों के इस नियम को कारण और प्रभाव (Law Of Cause And Effect) के नाम से भी जाना जाता है। निजी बोलचाल की भाषा में इस नियम को "जैसी करनी वैसी भरनी" के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति का कर्मों का यह सबसे सरल नियम है।


उन 8 कर्मों के नियम के बारे में जो प्रकृति के द्वारा या ब्रह्मांड के द्वारा बनाए गए हैं
Nature



प्रकृति के इस नियम के हिसाब से आप आज जिस प्रकार के कर्मों का बीज डालेंगे उसी प्रकार का फल आपको प्राप्त होगा। यदि आप अच्छाई, ईमानदारी मेहनत का बीज डालते हैं तो आपको इसका अच्छा ही परिणाम प्राप्त होगा।

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इसके विपरीत यदि आप बईमानी, अभिमान, झूठ आलस के कर्मों का बीज बोते हैं तो आपको परिणाम भी उसी प्रकार का प्राप्त होंगे।

2.) निर्माण का नियम (The Law Of Creation)


कर्मों का दूसरा नियम यह कहता है कि जीवन में कुछ भी अचानक से नहीं होता है। इसे हम हमारे मन, दिमाग व कर्मों के द्वारा ही निर्माण करते हैं। आप जिस प्रकार की जिंदगी चाहते हैं उसे आप अपने मन, दिमाग कार्यविधि व कर्मों के द्वारा निर्धारित कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए यदि आप डॉक्टर बनना चाहते हैं तो उसके लिए सोचे, परीक्षा उत्तीर्ण करें, हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करें। आप इस प्रकार के कर्मों को करते हुए डॉक्टर बन सकते हैं। परंतु यदि आप सोचे में बिना कुछ किए ही डॉक्टर बन जाऊं तो यह नामुमकिन है।


3.) स्वीकार्यता का नियम (Law Of Acceptance)


प्रकृति का तीसरा नियम जिसे हम स्वीकार करने के नियम के नाम से जानते हैं। प्रकृति का तीसरा नियम कहता है लोगों को और परिस्थितियों को हमें वह जैसे हैं उसी के रूप में स्वीकार करना चाहिए।




हमारी जिंदगी की अधिकतर समस्या ही इसलिए शुरू होती है कि हम लोगों को और परिस्थितियों को बदलने में लगे रहते हैं। जबकि हमें उनको उनके मूल रूप में स्वीकार करना चाहिए और अगर बदलना ही है तो खुद को बदलने की कोशिश करना चाहिए।

4.) जिम्मेदारी का नियम (Law Of Responsibility)


प्रकृति के चौथे नियम के अनुसार आज आप जो कुछ भी है उसके जिम्मेदार आप खुद ही हैं। आपने जो निर्णय लिए हैं आपने जो कर्म किए हैं उसी के आधार पर आपका वर्तमान है और आप वर्तमान में जो निर्णय लेंगे उसी के आधार पर आपका भविष्य तैयार होगा।

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इसलिए प्रकृति के इस नियम के आधार पर आप ही आपकी जिंदगी के अच्छे और बुरे के लिए जिम्मेदार है।


5.) प्रगति या विकास का नियम (Law Of Growth)


प्रकृति विकास के सिद्धांत पर कार्य करती है। यदि आपने जन्म लिया है तो आप बच्चे से जवान और जवान से बूढ़े जरूर होंगे और मृत्यु को प्राप्त होंगे। फिर आप चाहे या ना चाहे।

प्रकृति के इस नियम के हिसाब से आपको भी समय परिस्थितियां आदि की जरूरतों के हिसाब से प्रगति या विकास करना आवश्यक है।

6.) केंद्रीता का नियम (Law Of Focus)


प्रकृति के इस नियम के हिसाब से आप अपनी एनर्जी या ऊर्जा को जिन कार्यों में केंद्रित करेंगे या फोकस करेंगे। आपको उसी तरह की चीजें प्राप्त होगी या उसी तरह के परिणाम प्राप्त होंगे।




आप अपनी जिंदगी के जिस भी क्षेत्र में प्रगति चाहते हैं अपनी पूरी ऊर्जा को उसके पर केंद्रित करें। यदि आप अपनी उर्जा या एनर्जी को एक साथ कई चीजों पर फोकस करते हैं तो आपको मनवांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं।

7.) वर्तमान में जीने का नियम (Law Of Here & Now)


प्रकृति का सबसे महत्वपूर्ण नियमों में से एक है वर्तमान में जीने का नियम। अक्सर आपने लोगों को अपने भूतकाल या भविष्य की चिंता में जीते देखा होगा। परंतु प्रकृति का नियम कहता है कि आपको जो करना है उसे आज वर्तमान में और अभी करें।

क्योंकि भूतकाल बीत चुका है भविष्य का पता नहीं क्या होगा ? आपके पास जो है वह आज ही है। इसलिए वर्तमान में जिए।

8.) परिवर्तन का नियम (Law Of Change)


प्रकृति का आठवाँ नियम है बदलाव या परिवर्तन का नियम। प्रकृति में सब कुछ बदलता रहता है फिर चाहे वो मौसम, दिन-रात महीने साल आदि। यदि पतझड़ आता है तो बसंत भी आता है। हमें परिवर्तन या बदलाव से लड़ना बंद करके परिवर्तन को स्वीकार करना सीखना चाहिए।

आशा करती हूं प्रकृति में कर्मों के 8 नियम (Prakriti Mein Karmon ke 8 Niyam) पर आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।

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