नमस्कार,
दोस्तों जब भी हिंदू धर्म में किसी भगवान के अवतारों की बात आती है तो सबसे पहले भगवान विष्णु जी का नाम ही सामने आता है। भगवान विष्णु के अवतारों जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, मोहिनी, वराह, नरसिंह आदि अवतारों के बारे में तो सब लोग जानते हैं, पर क्या आप सभी भगवान शिव जी के अवतारों के बारे में जानते हैं ?
हम आपको आज के इस लेख के अंतर्गत भगवान शिवजी के 19 अवतारों के बारे में बताएंगे।
धर्म ग्रंथों में भगवान शिव जी के भी कुछ अवतारों का वर्णन मिलता है जो कि अलग-अलग उद्देश्य को पूरा करने के कारण लिए गए थे तो चलिए जानते हैं भगवान शिव के अवतार के बारे में।
भगवान शिव के अवतार
(Bhagwan shiv ke avrat)
1.) शरभ अवतार :-
भगवान शंकर का प्रथम अवतार था शरभ अवतार। इसमें भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग अर्थात हिरण और आधा शरीर शरभ पक्षी जिसे पुराणों में 8 पैरों वाला प्राणी भी बताया गया है दिखने में जो शेर की तरह होता है का था।
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इस अवतार में भगवान शंकर ने नरसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। जिसका वर्णन लिंग पुराण में मिलता है।
2.) पिप्पलाद अवतार :-
भगवान शिव जी का जो दूसरा अवतार था उसका नाम में पिप्पलाद अवतार। शनि पीड़ा से निवारण हेतु शंकर जी के पिप्पलाद अवतार का जन्म हुआ था। कथा के अनुसार पिप्पलाद ऋषि दधीचि के पुत्र थे। जिन्हें अपने जन्म से पूर्व ही अपने पिता के छोड़ जाने का दुख हमेशा रहता था।
एक बार पूछने पर देवताओं द्वारा उन्हें यह ज्ञात हुआ कि शनि की दृष्टि के कारण ही उनके पिता की मृत्यु उनके जन्म से पूर्व हो गई थी। तब उन्होंने शनिदेव को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण शनिदेव उसी समय आकाश से गिरने लगे।
तब फिर शनिदेव के क्षमा प्रार्थना करने के पश्चात उन्हें इस बात पर कि वह जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक किसी को भी कष्ट नहीं देंगे क्षमा कर दिया गया। तब से पिप्पलाद नाम के स्मरण मात्र से शनिदेव के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इसका वर्णन आपको शिवपुराण में देखने को मिलता है।
शिलाद मुनि जो कि एक ब्रह्मचारी थे। अपने वंश को समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद को संतान उत्पन्न करने को कहा। इसके बाद शिलाद ऋषि ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। तब भगवान शंकर ने स्वयं पुत्र रूप में शिलाद का पुत्र बनने का वरदान दिया।
कुछ समय पश्चात कृषि कार्य करते हुए उन्हें भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने जिसका नाम नंदी रख दिया। इसके बाद भगवान शंकर ने नंदी को अपना गण अध्यक्ष बनाया। इस प्रकार नंदी अवतार भगवान शंकर ही अंश है।
शिव पुराण में भैरव को भगवान शिव का पूर्ण अवतार बताया गया है। एक बार ब्रह्मा जी व विष्णु जी अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे। तभी उन्हें तेज पुंज के रूप में एक आकृति दिखाई दी। उसे देखकर ब्रह्मा जी ने कहा तुम मेरे पुत्र हो अतः तुम मेरे शरण में आ जाओ।
3.) नंदी अवतार :-
शिलाद मुनि जो कि एक ब्रह्मचारी थे। अपने वंश को समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद को संतान उत्पन्न करने को कहा। इसके बाद शिलाद ऋषि ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। तब भगवान शंकर ने स्वयं पुत्र रूप में शिलाद का पुत्र बनने का वरदान दिया।
कुछ समय पश्चात कृषि कार्य करते हुए उन्हें भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने जिसका नाम नंदी रख दिया। इसके बाद भगवान शंकर ने नंदी को अपना गण अध्यक्ष बनाया। इस प्रकार नंदी अवतार भगवान शंकर ही अंश है।
4.) भैरव अवतार :-
शिव पुराण में भैरव को भगवान शिव का पूर्ण अवतार बताया गया है। एक बार ब्रह्मा जी व विष्णु जी अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे। तभी उन्हें तेज पुंज के रूप में एक आकृति दिखाई दी। उसे देखकर ब्रह्मा जी ने कहा तुम मेरे पुत्र हो अतः तुम मेरे शरण में आ जाओ।
ब्रह्मा जी की बातें सुनकर भगवान शिव जी को क्रोध आ गया। तब भगवान शिव ने उस तेजपुंज रूपी पुरुष आकृति से कहा तुम काल की भाती दिखने के कारण कालराज हो और भीषण के कारण तुम भैरव भी हो।
भगवान शिव जी के इन वरों के कारण काल भैरव ने अपनी उंगली के नाखून से ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट दिया।
जिसके कारण काल भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। इसके बाद काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली।
महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अवतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई।
मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर है व 11 चिरंजीवी में उनका नाम उल्लेखनीय है।
भगवान शिव का विवाह दक्षराज की पुत्री सती से हुआ। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें भगवान शिव जी को निमंत्रण नहीं दिया गया। माता सती अपने पति के इस अपमान को सहन न कर सकी और दक्ष प्रजापति द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राणों का त्याग कर दिया।
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इस बात का पता जब भगवान शिव को चला तो उन्होंने अपने सिर की जटाओं से एक जटा उखाड़कर एक पर्वत के ऊपर फेंक दी जिसके फलस्वरूप भगवान शिव के अवतार वीरभद्र का जन्म हुआ।
वीरभद्र ने दक्षा प्रजापति का सिर काट कर अलग कर दिया। बाद में उन्हें बकरे का सिर लगाकर पुनः जीवित किया गया।
भगवान शंकर के सातवें अवतार का नाम ही ग्रहपति। नर्मदा तट पर स्थित धर्मपुर नाम के एक नगर में विश्वाना नाम के ऋषि व उनकी पत्नी सूचेश्वती रहती थी। सूचेश्वति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपने पति से शिव जी के समान पुत्र प्राप्ति के लिए अनुरोध किया।
जिसके बाद ऋषि ने काशी जाकर भगवान शिव की घोर तपस्या की। जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने सूचेश्वती के गर्भ से भगवान शिव का ग्रहपति अवतार धारण किया।
ऋषि दुर्वासा के बारे में कौन नहीं जानता है धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि अत्री ने पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से ऋषिकुल पर्वत पर घोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर यह वरदान दिया कि तुम्हारे घर 3 पुत्र होगे।
जिसके कारण काल भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। इसके बाद काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली।
5.) अश्वत्थामा अवतार :-
महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अवतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई।
मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर है व 11 चिरंजीवी में उनका नाम उल्लेखनीय है।
6.) वीरभद्र अवतार :-
भगवान शिव का विवाह दक्षराज की पुत्री सती से हुआ। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें भगवान शिव जी को निमंत्रण नहीं दिया गया। माता सती अपने पति के इस अपमान को सहन न कर सकी और दक्ष प्रजापति द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राणों का त्याग कर दिया।
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इस बात का पता जब भगवान शिव को चला तो उन्होंने अपने सिर की जटाओं से एक जटा उखाड़कर एक पर्वत के ऊपर फेंक दी जिसके फलस्वरूप भगवान शिव के अवतार वीरभद्र का जन्म हुआ।
वीरभद्र ने दक्षा प्रजापति का सिर काट कर अलग कर दिया। बाद में उन्हें बकरे का सिर लगाकर पुनः जीवित किया गया।
7.) ग्रहपति अवतार :-
भगवान शंकर के सातवें अवतार का नाम ही ग्रहपति। नर्मदा तट पर स्थित धर्मपुर नाम के एक नगर में विश्वाना नाम के ऋषि व उनकी पत्नी सूचेश्वती रहती थी। सूचेश्वति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपने पति से शिव जी के समान पुत्र प्राप्ति के लिए अनुरोध किया।
जिसके बाद ऋषि ने काशी जाकर भगवान शिव की घोर तपस्या की। जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने सूचेश्वती के गर्भ से भगवान शिव का ग्रहपति अवतार धारण किया।
8.) ऋषि दुर्वासा अवतार :-
ऋषि दुर्वासा के बारे में कौन नहीं जानता है धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि अत्री ने पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से ऋषिकुल पर्वत पर घोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर यह वरदान दिया कि तुम्हारे घर 3 पुत्र होगे।
तीनों भगवानों के वरदान स्वरूप ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय भगवान व शिव जी के अंश से ऋषि दुर्वासा का जन्म हुआ।
9.) हनुमान अवतार :-
भगवान शिव जी के सभी अवतार में सर्वश्रेष्ठ अवतार भगवान हनुमान जी का माना गया है। जिसमें भगवान शंकर ने एक वानर के रूप में जन्म लिया था। शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन में मोहिनी अवतार के समय शिव जी ने कामातुर होकर वीर्यपात कर दिया।
उस वीर्य को सप्त ऋषियों ने संग्रहित कर समय आने पर वानर राज केसरी की पत्नि अंजना के गर्भ में उसे प्रविष्ट करा दिया। जिससे हनुमान जी का जन्म हुआ। हनुमान जी भी चिरंजीवी अर्थात अमर है।
10.) वृषभ अवतार :-
शास्त्रों के अनुसार भगवान का वृषभ अवतार भगवान विष्णु के पुत्रों को मारने के लिए हुआ था। जब भगवान विष्णु दैत्यों का संहार करने पाताल लोक गए तब वहां उपस्थित स्त्रियों से उनके कई पुत्र उत्पन्न हुए। जिन्होंने पूरी सृष्टि में उत्पात मचा रखा था। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर उन सभी का संहार किया था।
11.) यतिनाथ अवतार :-
कथा के अनुसार एक पर्वत पर एक भील दंपत्ति निवास करती थी। एक बार भगवान शिव यतिनाथ का रूप रखकर इस दंपत्ति के घर रात रुकने के लिए गए। तब उस दंपति ने भगवान की रक्षा में अपने प्राण त्याग दिए।
12.) कृष्ण दर्शन अवतार :-
इक्ष्वाकु वंश में राजा नवक का जन्म हुआ। राजा नवक विद्या अध्यन के लिए राज्य से बाहर गए थे किंतु बहुत दिनों तक न लौटने के कारण उनके भाइयों ने आपस में ही राज्य को बांट लिया। राजा नवक को इस बात का पता चलने पर वह अपने पिता के पास गए।
जिन्होंने एक यज्ञ करने की सलाह दी। जहां पर भगवान शिव ने कृष्ण दर्शन अवतार लिया। भगवान शिव ने इस अवतार के माध्यम से यज्ञ आदि कार्यों के धार्मिक महत्व को बताया है।
13. ) अवधूत अवतार :-
भगवान शिव जी के इस अवतार का उद्देश्य इंद्र के अहंकार को नष्ट करना था। भगवान इंद्र की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने अवधूत अवतार धारण किया था।
14.) भिक्षुवर्य अवतार :-
एक समय की बात है जब विदर्भ नरेश को शत्रुओं ने मार दिया। किंतु उनकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छुपकर अपने प्राणों की रक्षा की। विदर्भ नरेश की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी को कुछ समय बाद घड़ियाल ने मार डाला।
तब वह बालक भूख प्यास से तड़पने लगा। तब एक भिखारन को भगवान शिव ने एक भिक्षुक का रूप धारण कर बालक का परिचय देकर उसके पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाने के लिए कहा। तथा फिर उस भिखारिन को भिक्षुक रूप धारी किए हुए शिव जी ने अपना असली रूप दिखाया।
15.) सुरेश्वर अवतार :-
भगवान का सुरेश्वर अवतार यह दिखाता है कि भगवान भी अपने भक्तों से कितना प्रेम करते हैं। इस अवतार में भगवान शिव जी एक बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अमर भक्ति का वरदान देते हैं।
उपमन्यु अपनी माता के निर्देश पर अपनी अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए महादेव का पूजन करने लगता है। जिसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव सुरेश्वर रूप धारण करके उपमन्यु को दर्शन देकर उसकी अभिलाषा पूरा करते हैं।
16.) किरात अवतार :-
भगवान शिव ने किरात अवतार महाभारत के समय लिया था। एक बार अर्जुन वनवास के दौरान जब तपस्या में लीन था तब दुर्योधन ने उसे मारने के लिए सूअर को भेजा। तभी भगवान शंकर ने किरात रूप धारण किया और वह उस पर बाण चला दिया।
भगवान शिव जी के बाण चलाने से पूर्व अर्जुन भी उस सूअर पर बाण चला चुका था। जब अर्जुन और किरात स्वरूप भगवान शंकर में यह बहस प्रारंभ हुई कि यह सूअर मेरे बाण से मरा है तो दोनों के बीच युद्ध शुरु हो गया।
अर्जुन की वीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अपना असली परिचय दिया। साथ ही युद्ध में अर्जुन को विजय होने का आशीर्वाद भी दिया।
17.) ब्रह्मचारी अवतार :-
माता सती द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में प्राणों की आहुति देने के बाद जब माता सती का जन्म हिमालय राज के घर हुआ। तब भगवान शिव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने घोर तप किया।
तब माता पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव देव ब्रह्मचारी का रूप धारण कर उनकी परीक्षा लेने के लिए गए। देव ब्रह्मचारी ने माता पार्वती से उनके तप का उद्देश्य पूछा। तब माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की।
तब देव ब्रह्मचारी भगवान शिव की घोर निंदा करने लगे। तब माता पार्वती उनकी निंदा बर्दाश्त न कर सकी। माता पार्वती का शिवजी के प्रति प्रेम देखकर भगवान शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना असली स्वरूप दिखाया।
18.) सुनटनर्तक अवतार :-
माता पार्वती के पिता हिमालय राज से उनकी पुत्री को प्राप्त करने हेतु भगवान शिव ने सुनटनर्तक अवतार धारण किया था। शिवजी हाथ में डमरू लेकर हिमालय राज के घर पहुंचकर नृत्य करने लगे। शिवजी ने इतना सुंदर नृत्य किया कि सभी उनसे प्रसन्न हो गए।
तब हिमालय राज ने प्रसन्न होकर नटराज से कुछ मांगने के लिए कहा तो उन्होंने हिमालय राज से उनकी पुत्री पार्वती को मांग लिया। बाद में नटराज रूपी शिव जी ने उन्हें अपने असल व्यक्तित्व का बोध कराया।
19.) यक्ष अवतार :-
भगवान शिव के 19 अवतारों में अंतिम अवतार जिसकी हम बात कर रहे हैं वह है यक्ष अवतार। यह अवतार भगवान शिव ने देवताओं के अनुचित और झूठे अभिमान को दूर करने के लिए लिया था।
समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीकर देवताओं को यह अभिमान हो गया कि उनसे बलशाली कोई और नहीं है। तब भगवान ने यक्ष अवतार धारण कर अन्य देवताओं के घमण्ड का सर्वनाश किया।
तो दोस्तों आशा करती हूं भगवान शिव के 19 अवतारों की यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।
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