नमस्कार,
दोस्तों हम जिस संसार में रहते हैं वहां पर अच्छे- बुरे, आस्तिक- नास्तिक, शांत व गुस्सा करने वाले सभी प्रकार के लोग रहते हैं। जी हां दोस्तों यदि आप गुस्सा कभी-कभार या कुछ गलत होने पर करते हैं तो यह ठीक है परंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं गुस्सा करना जिनकी आदत में शामिल हो जाता है।
वह अपने सहकर्मी, परिवार वालों और दोस्तों आदि सभी पर बिना कारण या छोटी-छोटी बातों पर ही गुस्सा करने लगते हैं। आज के इस लेख में हम आपको गुस्सा करने से बचने के लिए गौतम बुद्ध की कहानी के माध्यम से एक उपाय बताने जा रहे हैं। तो चलिए शुरू करते हैं हमारा आज का लेख कि गुस्सा करने से कैसे बचा जाए?
दोस्तों गुस्सा एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो सभी के साथ होती है। पर इसे कंट्रोल करना हमारे हाथ में होता है। आप सभी को यह तो पता होगा कि गुस्सा हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
जब हम जब भी गुस्सा करते हैं तो हमारा शरीर एक प्रकार के केमिकल का स्त्राव करता है जो हमारे पाचन तंत्र, नींद व मस्तिष्क की क्रियाविधि आदि शारीरिक गतिविधियों को बाधित करता है।
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चलिए अब हम जान लेते हैं उस कहानी के बारे में जो हमें गुस्से से बचने का उपाय बताती हैं तो चलते हैं शुरू करते हैं।
कहानी
( Story)
एक समय की बात है जब महात्मा गौतम बुद्ध एक पेड़ के नीचे अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। तभी उनके एक शिष्य ने सवाल किया कि हम अपने क्रोध या गुस्से को अपने वश में कैसे कर सकते हैं ? तब गौतम बुद्ध ने उन्हें कहानी सुनाई और कहा कि इस कहानी को सुनने के बाद तुम अपना क्रोध या गुस्सा को वश में करना सीख जाओगें। जो कहानी इस प्रकार है।
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एक गांव में एक क्रोधी व झगडालू औरत रहती थी। अक्सर वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाती थी। गुस्से में वह किसी को भी गालियां दे देती थी व भला-बुरा कहने लगती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात जब उस औरत का गुस्सा शांत हो जाता तब उस औरत को अपने क्रोध या गुस्से में किए हुए कार्य पर बहुत पछतावा होता था।
उसके परिवार के सभी सदस्य उसके इस गुस्सेल स्वभाव के कारण बहुत परेशान थे। उस घर में हमेशा ही एक लड़ाई व अशांति का माहौल बना रहता था। उस औरत के इसी गुस्से वाले स्वभाव के कारण उसके पड़ोसी भी उसे पसंद नहीं करते थे।
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यह बात उस औरत को भी पता थी कि उसके इसी गुस्से वाले क्रोधी स्वभाव के कारण कोई भी व्यक्ति उसे पसंद नहीं करता था। लेकिन चाह कर भी गुस्सा आने पर वह अपने आप को अपशब्द कहने से नहीं रोक पाती थी।
एक दिन एक साधु उस औरत के दरवाजे पर भिक्षा मांगने के लिए जाते हैं। तब यह स्त्री बड़े ही मायूस मन से उन साधु बाबा को अपनी इस परेशानी के बारे में बताती है। और वह कहती है कि हे साधु महाराज जी ! मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है और चाहकर भी मैं अपने इस गुस्से को नहीं रोक पाती हूं। कृपा करके आप मुझे ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे कि मैं अपने गुस्से को काबू में रख सकूं।
तब वह साधु महाराज उस स्त्री की बातों को सुनकर अपने झोले में से एक दवा से भरी एक बोतल निकाल कर उस औरत को दे देते हैं और कहते हैं कि मेरी बातों को ध्यान से सुनो। यह क्रोध या गुस्से को वश में करने की सबसे अचूक दवा है।
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जब भी तुम्हें क्रोध आये और किसी को कुछ अपशब्द कहने का मन करे तो अपनी जीभ पर इस दवा की 4 बूंदें डालकर कम से कम 10 मिनट तक अपना मुंह बंद रखना। अगर तुमने 10 मिनट से पहले अपना मुंह खोल लिया तो यह दवा अपना प्रभाव नहीं दिखा पाएगी। इतना समझाकर वह साधु महराज वहां से चले जाते हैं।
इसके बाद से वह स्त्री इस साधु महाराज द्वारा बताए अनुसार क्रोध या गुस्सा आने पर उस दवा का उपयोग वैसे ही करती जैसा कि साधु महाराज द्वारा उस स्त्री को बताया गया था। इस प्रक्रिया को कुछ दिनों तक करने के बाद ही उस औरत की गुस्सा करने की आदत छूट जाती है।
जब भी तुम्हें क्रोध आये और किसी को कुछ अपशब्द कहने का मन करे तो अपनी जीभ पर इस दवा की 4 बूंदें डालकर कम से कम 10 मिनट तक अपना मुंह बंद रखना। अगर तुमने 10 मिनट से पहले अपना मुंह खोल लिया तो यह दवा अपना प्रभाव नहीं दिखा पाएगी। इतना समझाकर वह साधु महराज वहां से चले जाते हैं।
इसके बाद से वह स्त्री इस साधु महाराज द्वारा बताए अनुसार क्रोध या गुस्सा आने पर उस दवा का उपयोग वैसे ही करती जैसा कि साधु महाराज द्वारा उस स्त्री को बताया गया था। इस प्रक्रिया को कुछ दिनों तक करने के बाद ही उस औरत की गुस्सा करने की आदत छूट जाती है।
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जब एक महीने बाद पुनः साधु महाराज उस स्त्री के दरवाजे पर भिक्षा लेने जाते हैं तो वह औरत दौड़कर साधु महात्मा के पास आती है और उनके पैर पकड़कर कहने लगती है कि आप की दवा ने तो मुझ पर जादू कर दिया।
आपकी दवा के प्रभाव के कारण अब मुझे बात-बात पर गुस्सा नहीं आता है। और मेरे घर परिवार में भी अब शांति का वातावरण रहता है। उस स्त्री की बातें सुनकर साधु महाराज मुस्कुराते हुए कहते हैं कि बेटी उस बोतल में तो क्रोध या गुस्से की कोई दवा ही नहीं थी।
बल्कि वह बोतल तो पानी से भरी हुई थी। तुमने अपने गुस्से पर काबू उस दवा की वजह से नहीं बल्कि चुप अर्थात मौन रहने की वजह से पाया है।
कहानी का सार
कहानी का सार बताते हुए गौतम बुद्ध कहते हैं कि गुस्से पर काबू सिर्फ चुप अर्थात मौन रहकर ही पाया जा सकता है क्योंकि गुस्से में इंसान अपने मुंह से अपशब्द कहता है जो कि नए झगड़े व परेशानियों को जन्म देता है।
इसलिए क्रोध या गुस्से के समय मौन धारण कर लेना ही गुस्से को वश में करने का एकमात्र उपाय हैं। जब एक इंसान गुस्से में होता है तो उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है और सिर्फ बिना सोचे समझे वह बोल रहा होता है। गुस्से में इतना कुछ कह जाता है कि बाद में वह सारी उम्र अपनी इस गलती पर पछताता रहता है।
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कुछ समय के गुस्से में आकर इंसान न केवल मुँह से हिंसा करता है बल्कि कभी-कभी तो वह हथियारों से शारीरिक हिंसा तक कर डालता है। जिसका परिणाम उसे अपनी पूरी जिंदगी भर भुगतना पड़ता हैं। जबकि गुस्सा तो केवल कुछ क्षणों के लिए ही होता है।
यदि हम अपने ग़ुस्से या क्रोध के उन कुछ क्षणों के लिये शांत रह पाए तो हम अपनी जिंदगी की कई समस्याओं और झगड़ों को शुरू होने से पहले ही खत्म कर सकते हैं। इसलिए अब अगली बार जब भी गुस्सा आए तो दिमाग को शांत रखते हुए उस दवाई के कुछ बूंदों को अपने मुंह में डालिये और गुस्सा शांत होने तक मौन धारण कर लीजिए।
आशा करती हूं गुस्सा या क्रोध से बचने के उपाय में गौतम बुद्ध की यह कहानी (krodh ya gussa karane se bachane ka upaay gautam buddh in hindi) आपको पसंद आयी होगी। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।
जब एक महीने बाद पुनः साधु महाराज उस स्त्री के दरवाजे पर भिक्षा लेने जाते हैं तो वह औरत दौड़कर साधु महात्मा के पास आती है और उनके पैर पकड़कर कहने लगती है कि आप की दवा ने तो मुझ पर जादू कर दिया।
आपकी दवा के प्रभाव के कारण अब मुझे बात-बात पर गुस्सा नहीं आता है। और मेरे घर परिवार में भी अब शांति का वातावरण रहता है। उस स्त्री की बातें सुनकर साधु महाराज मुस्कुराते हुए कहते हैं कि बेटी उस बोतल में तो क्रोध या गुस्से की कोई दवा ही नहीं थी।
बल्कि वह बोतल तो पानी से भरी हुई थी। तुमने अपने गुस्से पर काबू उस दवा की वजह से नहीं बल्कि चुप अर्थात मौन रहने की वजह से पाया है।
कहानी का सार
(The essence of the story)
कहानी का सार बताते हुए गौतम बुद्ध कहते हैं कि गुस्से पर काबू सिर्फ चुप अर्थात मौन रहकर ही पाया जा सकता है क्योंकि गुस्से में इंसान अपने मुंह से अपशब्द कहता है जो कि नए झगड़े व परेशानियों को जन्म देता है।
इसलिए क्रोध या गुस्से के समय मौन धारण कर लेना ही गुस्से को वश में करने का एकमात्र उपाय हैं। जब एक इंसान गुस्से में होता है तो उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है और सिर्फ बिना सोचे समझे वह बोल रहा होता है। गुस्से में इतना कुछ कह जाता है कि बाद में वह सारी उम्र अपनी इस गलती पर पछताता रहता है।
(और पढ़े :- हनुमान अष्टक पाठ की महिमा, फायदे औऱ पूजन विधि)
कुछ समय के गुस्से में आकर इंसान न केवल मुँह से हिंसा करता है बल्कि कभी-कभी तो वह हथियारों से शारीरिक हिंसा तक कर डालता है। जिसका परिणाम उसे अपनी पूरी जिंदगी भर भुगतना पड़ता हैं। जबकि गुस्सा तो केवल कुछ क्षणों के लिए ही होता है।
यदि हम अपने ग़ुस्से या क्रोध के उन कुछ क्षणों के लिये शांत रह पाए तो हम अपनी जिंदगी की कई समस्याओं और झगड़ों को शुरू होने से पहले ही खत्म कर सकते हैं। इसलिए अब अगली बार जब भी गुस्सा आए तो दिमाग को शांत रखते हुए उस दवाई के कुछ बूंदों को अपने मुंह में डालिये और गुस्सा शांत होने तक मौन धारण कर लीजिए।
आशा करती हूं गुस्सा या क्रोध से बचने के उपाय में गौतम बुद्ध की यह कहानी (krodh ya gussa karane se bachane ka upaay gautam buddh in hindi) आपको पसंद आयी होगी। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।
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