नमस्कार दोस्तों,
आज मैं आपसे एक भक्त का अनुभव शेयर करूंगी। जो कि संत सिंगाजी महाराज (sant singhji maharaj) के भक्त हैं। दोस्तों हमारे यहां भारतवर्ष में गुरु व संतजनों का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना गया है।आज मैं आपसे संत सिंगाजी के एक भक्त के अनुभव के बारे में बात करूंगी तो चलिए शुरू करते हैं।
दोस्तों संत सिंगाजी मालवा क्षेत्र के बहुत ही प्रसिद्ध संतों व कवियों में से एक हैं। जिनका समाधि स्थान मूंदी जिले के ग्राम पिपलिया खुर्द में हैं। संत सिंगाजी को जानवरों जैसे गाय, भैस आदि से बहुत लगाव था। वे एक ग्वाला परिवार में जन्मे थे।
प्रत्येक वर्ष की शरद पूर्णिमा को संत सिंगाजी की समाधि पर मेले का आयोजन होता है। जिस पर लाखों श्रद्धालु संत सिंगाजी महाराज की समाधि पर मत्था टेकने आते हैं और साथ ही उन्हें अर्पित करने के लिए ध्वजा निशान, घी, दूध, हलवा, चना चिरौंजी व नारियल आदि का भोग लाते हैं।
हम आज जिस भक्त के अनुभव को आपके शेयर करने जा रहे हैं उनका नाम है, विजय। जैसा कि हमने आपको पूर्व में बताया कि संत सिंगाजी की समाधि स्थल पर प्रत्येक वर्ष की शरद पूर्णिमा को मेले का आयोजन होता है व लोग दूर-दूर से अपनी क्षमता व इच्छा अनुसार वस्तुओं का भोग लगाते हैं।
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जिनके घर कोई पशु होता है वह मुख्य रूप से दूध व घी का भोग अर्पण करते हैं। हमारे भक्त विजय चढ़ावे के लिए थोड़ी सी मात्रा में घी लेकर संत सिंगाजी के दर्शन के लिए जब घर से निकले तो उनकी माता ने संत सिंगाजी समाधि स्थल से कुछ घी लाने का कहकर उन्हें एक पात्र दिया।
दरअसल बात यह है कि पहले इतनी अधिक मात्रा में घी की चढ़ोत्तरी होने पर वहां के पुजारी घी का दान कर दिया करते थे। जब विजय संत सिंगाजी के दर्शन करने गए थे तब वे अपनी मां का दिया हुआ पात्र भी साथ ले गए थे।
जिनके घर कोई पशु होता है वह मुख्य रूप से दूध व घी का भोग अर्पण करते हैं। हमारे भक्त विजय चढ़ावे के लिए थोड़ी सी मात्रा में घी लेकर संत सिंगाजी के दर्शन के लिए जब घर से निकले तो उनकी माता ने संत सिंगाजी समाधि स्थल से कुछ घी लाने का कहकर उन्हें एक पात्र दिया।
दरअसल बात यह है कि पहले इतनी अधिक मात्रा में घी की चढ़ोत्तरी होने पर वहां के पुजारी घी का दान कर दिया करते थे। जब विजय संत सिंगाजी के दर्शन करने गए थे तब वे अपनी मां का दिया हुआ पात्र भी साथ ले गए थे।
परंतु विजय वहां से दर्शन करके बिना घी लिये खाली पात्र लेकर ही घर आ गए थे। वह खाली पात्र उन्होंने घर के अंदर एक स्थान पर रख दिया।
जब उनकी मां ने पूछा कि वह घी लेकर आए हैं या नहीं तब उन्होंने मां को कहा कि वह घी लेकर नहीं आए हैं और पात्र अंदर कमरे में रखा है। विजय के मना करने पर उनकी मां ने पात्र खोल कर नहीं देखा।
जब उनकी मां ने पूछा कि वह घी लेकर आए हैं या नहीं तब उन्होंने मां को कहा कि वह घी लेकर नहीं आए हैं और पात्र अंदर कमरे में रखा है। विजय के मना करने पर उनकी मां ने पात्र खोल कर नहीं देखा।
किंतु दो दिवस के बाद जब उन्हें घी की खुशबू आने लगी और विजय की मां ने वह पात्र खोल कर देखा तो वह पात्र जो विजय सिंगाजी दर्शन से खाली लेकर आए थे वह घी से भरा हुआ था।
फिर विजय की मां ने पुनः विजय से पूछा कि तुम तो झूठ बोल रहे थे कि संत सिंगाजी की समाधि स्थल से तुम पात्र में घी लेकर नहीं आए हो।
तब विजय ने कहा नहीं, मैं सच बोल रहा था। मैं वहां से खाली पात्र ही लाया था। फिर उनकी मां ने कहा कि यह देखो पात्र तो घी से भरा हुआ है। तब विजय को समझ आया कि यह तो संत सिंगाजी का ही आशीर्वाद है जो खाली पात्र में भी घी भर गया है।
तब विजय ने कहा नहीं, मैं सच बोल रहा था। मैं वहां से खाली पात्र ही लाया था। फिर उनकी मां ने कहा कि यह देखो पात्र तो घी से भरा हुआ है। तब विजय को समझ आया कि यह तो संत सिंगाजी का ही आशीर्वाद है जो खाली पात्र में भी घी भर गया है।
तो बोलिए संत सिंगाजी महाराज की जय।
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धन्यवाद।
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