नमस्कार,
दोस्तों आप सभी ने हिंदू धर्म ग्रंथों में से किसी ने किसी पुराण या महाकाव्य का श्रवण या पाठक जरूर किया होगा। हमारे हिंदू धर्म में अनेक ग्रंथ, पुराण,वेद व उपनिषद जैसे रामायण, भगवत पुराण, गरुड़ पुराण, शिव पुराण आदि पाए जाते हैं पर इन सब में एक ग्रंथ ऐसा है जिसकी यदि बात न की जाए तो हिंदू धर्म की व्याख्या को अधूरा माना जाएगा।
जी हां दोस्तों मैं बात कर रही हो हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय ग्रंथ भगवत गीता (Bhagwat geeta) के बारे में। आप में से कुछ लोगों ने कभी न कभी भगवत गीता का पाठन या श्रवण जरूर किया होगा।
भगवत गीता हिंदू धर्म का एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें मनुष्य के जीवन में आने वाले हर एक प्रश्न का उत्तर आपको मिल जाएगा। यही कारण है कि विवेक बिंद्रा जैसे मोटिवेशनल स्पीकर भी भगवत गीता के माध्यम से अपने बिजनेस सेमिनार दिया करते हैं।
दोस्तों हम यहां पर भगवत गीता से संबंधित एक सीरीज शुरू कर रहे हैं जिसमें प्रत्येक अध्याय के भावार्थ के माध्यम से आपको लाइफ मैनेजमेंट (जीवन प्रबंधन), भगवत गीता के माध्यम से कैसे करें पर चर्चा करेंगे।
भगवत गीता के माध्यम से हम हमारे प्रश्नों के उत्तर कैसे पा सकते हैं? हमारा जीवन कैसा होना चाहिए? आदि बातों पर चर्चा करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं भगवत गीता के अनुसार लाइफ मैनेजमेंट की (bhagwat geeta k anusar life management) हमारी इस सीरीज को जो आपको आपके जीवन में आने वाले प्रश्नों व समस्याओं के हल खोजने में आपकी मदद करेगीं।
भगवत गीता पर आपने अनेक लेख पढ़े होंगे। हम यहां पर भगवत गीता के सार के माध्यम से आपको Life management (जीवन प्रबंधन) की कुछ तकनीकों के बारे में बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं।
भगवत गीता सार अध्याय 1
भगवत गीता सार अध्याय 1
(Bhagavad Gita saar Chapter 1)
भगवत गीता के पहले अध्याय का नाम अर्जुन विषाद योग (arjun vishad yog) है। जिसकी शुरुआत धृतराष्ट्र के प्रश्नों से होती है धृतराष्ट्र यह जानना चाहते हैं कि युद्ध में क्या हो रहा है? उनका पुत्र दुर्योधन और उनकी सेना तथा उसके साथ ही पांडव पुत्र व उनकी सेना युद्ध भूमि पर क्या कर रही है?
गीता के इस अध्याय में दोनों ओर की सेनाओं में उपस्थित शुरवीरों के वर्णन के साथ अर्जुन के विषाद का वर्णन भी गीता के इस प्रथम अध्याय में किया गया है। आइए अब जानते हैं गीता का प्रथम अध्याय क्या कहता है?
गीता के प्रथम अध्याय में धृतराष्ट्र यह जानना चाहते हैं कि युद्ध भूमि पर क्या हो रहा है? क्योंकि वह आंखों से अंधे थे इसलिए वह स्वयं युद्ध को नहीं देख सकते थे। इसलिए उन्होंने अपने सारथी संजय से कहा कि तुम मुझे युद्ध भूमि पर ले चलो और वहां का वृतांत सुनाएं।
गीता के प्रथम अध्याय में धृतराष्ट्र यह जानना चाहते हैं कि युद्ध भूमि पर क्या हो रहा है? क्योंकि वह आंखों से अंधे थे इसलिए वह स्वयं युद्ध को नहीं देख सकते थे। इसलिए उन्होंने अपने सारथी संजय से कहा कि तुम मुझे युद्ध भूमि पर ले चलो और वहां का वृतांत सुनाएं।
तब व्यास ऋषि ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की। जिसके कारण संजय हस्तिनापुर में होते हुए भी कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि का समाचार धृतराष्ट्र को सुनाने में सफल हुए।
धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय ने युद्ध भूमि का समाचार सुनाते हुए धृतराष्ट्र को बताया कि पांडवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना है, जबकि कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना है।
पांडवों की सेना में अर्जुन,भीम,विराट नरेश, महारथी द्रुपद,धृष्टकेतु,चेकितान,काशीराज,पुरुजित,शैव्य,कुन्तिभोज,युधामन्यु, सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु तथा द्रोपदी के पुत्र सम्मिलित हैं।
कौरवों की सेना में भीष्म,कर्ण,कृपाचार्य,अश्वत्थामा,
विकर्ण, सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा जैसे महारथी अपने प्राणों के बलिदान के लिए उपस्थित हैं।
युद्ध में उपस्थित सभी वीरों ने अपने-अपने शंख को बजाकर युद्ध का आरंभ कर दिया है। इसी बीच अर्जुन श्री कृष्ण से कहते हैं कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए, जिससे कि युद्ध से पहले मैं युद्ध करने वाले वीरों को अच्छे से देख सकू कि रणभूमि में किन-किन योद्धाओं के साथ मुझे युद्ध करना है।
जब अर्जुन ने युद्धभूमि के दोनों और अपने ही परिजन चाचा,बाबा,गुरु,मामा,भाई,पुत्र,ससुर आदि प्रियजनों को शस्त्रों से सुसज्जित देखा तो अत्यंत ही दुख के साथ श्री कृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं कर सकता हूं, मेरे अंग ढीले होते जा रहे हैं, मुख सुखा जा रहा है, मेरे शरीर में कंपन उत्पन्न हो रहा है व मेरा धनुष गांडीव मेरे हाथों से गिर रहा है। मुझ में यहां खड़े रहने होने तक का सामर्थ्य भी अब खत्म हो चुका है।
युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करके यदि मैं युद्ध जीतकर राज्य पा भी लेता हूं तो यह मेरे किसी काम का नहीं हैं। इस प्रकार अर्जुन के विषाद से भगवत गीता के इस प्रथम अध्याय का अंत होता है।
गीता के प्रथम अध्याय के अनुसार जीवन का प्रबंधन
धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय ने युद्ध भूमि का समाचार सुनाते हुए धृतराष्ट्र को बताया कि पांडवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना है, जबकि कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना है।
पांडवों की सेना में अर्जुन,भीम,विराट नरेश, महारथी द्रुपद,धृष्टकेतु,चेकितान,काशीराज,पुरुजित,शैव्य,कुन्तिभोज,युधामन्यु, सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु तथा द्रोपदी के पुत्र सम्मिलित हैं।
कौरवों की सेना में भीष्म,कर्ण,कृपाचार्य,अश्वत्थामा,
विकर्ण, सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा जैसे महारथी अपने प्राणों के बलिदान के लिए उपस्थित हैं।
युद्ध में उपस्थित सभी वीरों ने अपने-अपने शंख को बजाकर युद्ध का आरंभ कर दिया है। इसी बीच अर्जुन श्री कृष्ण से कहते हैं कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए, जिससे कि युद्ध से पहले मैं युद्ध करने वाले वीरों को अच्छे से देख सकू कि रणभूमि में किन-किन योद्धाओं के साथ मुझे युद्ध करना है।
जब अर्जुन ने युद्धभूमि के दोनों और अपने ही परिजन चाचा,बाबा,गुरु,मामा,भाई,पुत्र,ससुर आदि प्रियजनों को शस्त्रों से सुसज्जित देखा तो अत्यंत ही दुख के साथ श्री कृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं कर सकता हूं, मेरे अंग ढीले होते जा रहे हैं, मुख सुखा जा रहा है, मेरे शरीर में कंपन उत्पन्न हो रहा है व मेरा धनुष गांडीव मेरे हाथों से गिर रहा है। मुझ में यहां खड़े रहने होने तक का सामर्थ्य भी अब खत्म हो चुका है।
युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करके यदि मैं युद्ध जीतकर राज्य पा भी लेता हूं तो यह मेरे किसी काम का नहीं हैं। इस प्रकार अर्जुन के विषाद से भगवत गीता के इस प्रथम अध्याय का अंत होता है।
गीता के प्रथम अध्याय के अनुसार जीवन का प्रबंधन
(Gita ke pratham adhyay ke anusar jeevan ka prabhandhan)
दोस्तों भगवत गीता में बताया गया है कि जब हम शत्रु या समस्या को देखते हैं तो वह हमें बहुत बड़ी दिखाई देती है, जिसे देख कर मन में अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं। भगवत गीता का प्रथम अध्याय हमें यह बताता है कि हमारे जीवन में चाहे शत्रु हो या कोई समस्या सबसे पहले हमें उसके बारे में संपूर्ण जानकारी को प्राप्त करना चाहिए। समस्या के हर पहलू से हमें भली-भांति परिचित होना चाहिए।
समस्या के बारे में जानने के पश्चात हमें अपना स्वयं का आकलन भी करना चाहिए कि किस प्रकार हम अपनी समस्या पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार दोनों पक्षों को जानने को ही आज के समय का रिस्क मैनेजमेंट (Risk management) कहा जाता है।
अर्जुन के जैसे ही हमें भी अपनी समस्या को भली-भांति जानना चाहिए। उस समस्या से होने वाले फायदे व नुकसान भी हमें अच्छी तरह से पता होना चाहिए, और फिर उसी के अनुसार हमें निर्णय लेना चाहिए।
अर्जुन के माध्यम से भगवत गीता के प्रथम अध्याय में यह बताया गया है कि युद्ध की बात करना कितना आसान होता है किंतु युद्ध करना बहुत ही कठिन होता है।
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