नमस्कार,
दोस्तों आपने आप सभी को यह कहते तो जरूर सुना होगा कि व्यक्ति को अपने जीवन में सही गुरु अवश्य बनाना चाहिए। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा बताया गया है।
कबीर दास जी ने गुरु कृपा की महिमा में तो यहां तक कह दिया है कि
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो मिलाय" ।।
अर्थात गुरु और गोविंद (ईश्वर) यदि दोनों खड़े हो तो गुरु के चरण वंदना पहले करनी चाहिए। क्योंकि गुरु ही है जिनकी कृपा के स्वरूप हमें ईश्वर की प्राप्ति हुई है।
इसके अलावा गुरु की महिमा का बखान करते हुए यहां तक कहा गया है कि गुरु के समान कोई दाता नहीं और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है। तीनों लोगों की संपत्ति से बढ़कर गुरु अपने नाम की दीक्षा अपने सेवक को सहज ही प्रदान कर देते हैं।
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गुरु कृपा की महिमा |
आज के इस लेख में हम एक भक्त पर हुई गुरु की कृपा की महिमा के बारे में बात करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।
एक गुरु थे जिनका बहुत ही प्यारा शिष्य था। जिसका नाम मुरारी था। मुरारी एक जौहरी अर्थात सोने के व्यापारी की दुकान पर कर्मचारी था। एक बार वह अपने गुरुदेव के पास उनसे मिलने गया। तब मुरारी ने सेवा के रूप में कुछ रुपए गुरुदेव को भेंट स्वरूप दिए।
वैसे तो कोई भी गुरु अपने शिष्य से पैसे नहीं लेते हैं पर मुरारी का उन रुपए को कुछ अच्छे कार्य में लगाने का सेवा भाव को देखकर गुरुदेव ने वह रुपये स्वीकार कर लिए।
मुरारी ने अपने गुरु को ₹1000 सेवा के स्वरूप दान में दिए। जब गुरुदेव जी से पूछा कि यह कितने रुपए हैं तब मुरारी ने कहा गुरुदेव यह हजार रुपए हैं। गुरुदेव ने फिर मुरारी से पूछा कि तुम्हारी तनखा कितनी है ?
तब मुरारी ने कहा गुरुदेव हजार रुपये हैं। तब गुरुदेव इस बात को सुनकर इतना खुश हुए और कहने लगे हजार रुपये तेरी तनखा है और तूने हजार रुपये भी मुझे दान में दे दिये। मैं तुझसे बहुत खुश हूं और आशीर्वाद देता हूं कि "तेरे भंडार भरे रहेंगे"।
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कुछ समय के बाद गुरुदेव के आशीर्वाद से मुरारी जिस जौहरी की दुकान पर कार्य करता था। वह अपनी बेटी की शादी के लिए रिश्ता ढूंढ रहे थे। तब उनके दिमाग में बार-बार मुरारी का ही ख्याल आ रहा था।
उस जौहरी ने भी अपनी बेटी की शादी मुरारी के साथ कर दी। चूंकि जौहरी की केवल एक ही बेटी थी। इसलिये जौहरी ने अपनी दुकान मुरारी के नाम कर दी। शादी के बाद मुरारी दुकान का मालिक बन गया।
आज मुरारी काम करने वाले से दुकान का मालिक बन गया था। यह उसके गुरुदेव का ही आशीर्वाद था जो वह आज इतना समृद्ध व सुखी था।
गुरुदेव अपने भक्तों व शिष्यों की हर तरह से सहायता करते हैं। तो दोस्तों हमें भी अपने जीवन में किसी अच्छे गुरु का सहारा मिल जाए तो हम भी अपनी समस्याओं व कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
आशा करती हूं एक भक्त पर गुरु कृपा की महिमा (ak bhakt pr guru kripa ki mahima) पर आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।
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