जानिए क्यों है चारों युगों में सर्वश्रेष्ठ कलयुग महर्षि वेदव्यास जी के अनुसार (jaanie kyon hai chaaron yugon mein sarvashreshth kalayug maharshi vedavyaas jee ke anusaar in hindi)

 


नमस्कार,

            दोस्तों हिंदू धर्म ग्रंथ में सृष्टि को चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग द्वापरयुग व कलयुग में विभाजित किया गया है। चारों युगों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। परंतु आज के इस लेख में हम जानेंगे कि महर्षि वेदव्यास जी ने चारों युगों में कलयुग को सर्वश्रेष्ठ क्यों बताया है? विष्णु पुराण के अंतर्गत कलयुग को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। तो चलिए शुरू करते हैं।


विष्णु पुराण के अंतर्गत अध्याय 2 में वर्णित कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास गंगा नदी में स्नान व ध्यान कर रहे थे। तभी आस-पास उपस्थित ऋषियों ने इस दृश्य को देखा और एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। कुछ समय बाद ऋषि वेदव्यास ध्यान से उठकर खड़े हुए तो कहने लगे कि युगों में कलयुग, वर्ण में शूद्र व इंसानों में स्त्री सर्वश्रेष्ठ है। ऐसा कहकर उन्होंने पुनः जल में एक डुबकी लगाई और पुन: शूद्र, स्त्री व कलयुग को श्रेष्ठ बताने लगे।


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तब वहां बैठे अन्य ऋषियों ने जब यह सुना तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि महर्षि वेदव्यास यह क्या कह रहे हैं? अन्य ऋषियों की जानकारी के अनुसार तो उन्होंने सुना था कि जातियों में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ है तथा युग में कलयुग शापित है। फिर व्यास जी ऐसा क्यों कह रहे हैं?



तब एक ऋषि गण बोले इसका उत्तर तो सिर्फ व्यास जी ही दे सकते हैं। जब महर्षि व्यास जी नदी से स्नान व ध्यान करके बाहर आए तो सभी ने जिज्ञासा वश उन प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु महर्षि व्यास जी से अनुरोध किया। ऋषि गणों ने कहा अभी आप जो कह रहे थे कि शूद्र ही श्रेष्ठ है, कलयुग ही श्रेष्ठ और स्त्रियां ही साधु और धन्य है इसका क्या अर्थ है?




आप जैसे विद्वान महर्षि कुछ भी अनुचित नहीं कह सकते हैं। हम आपसे इस पूरे विषय को समझना चाहते हैं। कृपया कर आप हमें इन प्रश्नों के उत्तर विस्तार से बताइए।


तब महर्षि व्यास जी ने कहा जो फल सतयुग में 10 वर्षों तक तपस्या करने, ब्रम्हचर्य व जप आदि करने से मिलता है। उसे त्रेतायुग में 1 वर्षों में तथा द्वापरयुग में 1 महीने में व कलयुग में केवल 1 दिन या रात में प्राप्त किया जा सकता है।


कलयुग में केवल भगवान के नाम का स्मरण करने पर ही आपको यज्ञ, जप आदि फलों की प्राप्ति हो जाती हैं। इस कारण से सभी युगों में कलयुग श्रेष्ठ है। कलयुग में थोड़े से परिश्रम से ही व्यक्ति को उसका पुण्य मिल जाता है।


तब ऋषियों ने पूछा कि अब आप शूद्र किस प्रकार से श्रेष्ठ है इसका वर्णन कीजिए। तब महर्षि व्यास जी ने कहा ब्राह्मणों को पहले ब्रम्हचर्य का पालन करना पड़ता है। उसके बाद वेदों का अध्ययन कर जप, तप व यज्ञ करना पड़ता है। ब्राह्मणों को सदा संयमित आचरण करना पड़ता है, जो कि बहुत कठिन है। हर ब्राह्मण इसे नहीं कर पाता है।


जबकि शूद्रों को मंत्रहीन यज्ञ का अधिकार होता है। शूद्र दूसरों की सेवा करके करने मात्र से ही सद्गति को प्राप्त कर लेता है। इसलिए सभी जातियों में शूद्र श्रेष्ठ है।




इसके बाद महर्षि ने नारी को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए हुए उत्तर दिया कि पुरुषों को अपने धर्म अनुकूल प्राप्त धन से पात्र व्यक्ति को दान व यज्ञ करना पड़ता है। किंतु स्त्रीयाँ तन, मन व वचन से अपने पति की सेवा करके पति के समान ही शुभ लोकों को प्राप्त करने की अधिकारी होती है। इसलिए नारी को भी कलयुग में साधु और श्रेष्ठ बताया है।


कलयुग में केवल नाम जप करने के माध्यम से ही मनुष्य परम गति या सद्गति को प्राप्त कर लेता है। तो दोस्तों अब आप भी समझ ही गए होंगे कि महर्षि वेदव्यास ने तीनों युगों में कलयुग को श्रेष्ठ क्यों बताया है।

आशा करते हूँ आपको जानिए क्यों है चारों युगों में सर्वश्रेष्ठ कलयुग महर्षि वेदव्यास जी के अनुसार (charo yugo me serwsreshth kalyug) पर हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।


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