नमस्कार,
दोस्तों हमने कई बार कर्म बड़ा या भाग्य इसके बारे में तो जरूर सुना है परंतु इसके साथ ही एक और प्रश्न उठता है जो हमारे दिमाग में अक्सर घूमता रहता है वह प्रश्न है कर्म बड़ा या धर्म ?
आपने कुछ लोगों को अक्सर यह कहते सुना होगा कि कर्म ही पूजा है। हम तो कर्म करने में विश्वास रखते हैं। तो क्या आपको भी लगता है कि सिर्फ कर्म ही सब कुछ है? धर्म का आपके जीवन में कोई स्थान नहीं है?
तो चलिए एक कहानी के माध्यम से जानते हैं कर्म बड़ा या धर्म ?
कर्म बड़ा या धर्म कहानी ( karma badha ya dharma story)
एक समय की बात है धर्म और कर्म आपस में लड़ने लगे कि हम दोनों में बड़ा कौन है? तब वह लड़ते हुए न्याय मांगने के लिए राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे। उस समय राजा विक्रमादित्य जैसा सही न्याय कोई और नहीं कर सकता था। उनके न्याय की प्रसिद्धि चारों तरफ फैली हुई थी।
राजा विक्रमादित्य ने जब कर्म व धर्म को अपनी राज्यसभा में देखा तो उनका अभिवादन कर आने का कारण पूछा।
तब कर्म व धर्म ने कहा हम आपके राज दरबार में न्याय मांगने के लिए आए हैं। हम जानना चाहते हैं कि हम दोनों में से बड़ा व श्रेष्ठ कौन है ?
तब राजा विक्रमादित्य कर्म व धर्म को साथ लेकर एक स्थान पर जहां पर कोई साधु तपस्या कर रहे थे वहां पर पहुंचे। उन्हीं साधु का कोई शिष्य उनके पास दर्शन हेतु जा रहा था।
तब विक्रमादित्य ने धर्म को अपने पास रोककर कर्म को अकेले उस शिष्य के पास जाने के लिए कहा। कर्म उस शिष्य के साथ चला गया। जब वह साधु के दर्शन हेतु उस स्थान पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि साधु तो तपस्या में लीन है।
तब वह उस साधु को जगाने का प्रयास करने लगे। अनेक कोशिशों के बाद भी साधु जब तपस्या से नहीं उठे तो शिष्य ने अपने पास ही रखी लकड़ी को उठाकर उस साधु पर प्रहार कर दिया।
इस पर साधु ने क्रोधित होकर उस शिष्य को श्राप दे दिया। कर्म ने सारा वृत्तांत आकर राजा विक्रमादित्य को सुनाया।
तब राजा विक्रमादित्य ने धर्म को अकेले उस शिष्य के साथ जाने के लिए कहा। जब धर्म उस शिष्य के साथ गया तो शिष्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह पुनः साधु से मिलने गया और साधु से माफी मांगने लगा।
तब साधु को भी शिष्य पर दया आ गई। तब उस साधु ने कहा कि मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता किंतु इससे बाहर निकलने का मार्ग बता सकता हूं। इस प्रकार उस साधु ने शिष्य को श्राप से बाहर निकालने का मार्ग बताकर उसका जीवन खुशियों से भर दिया।
जब धर्म पुनः विक्रमादित्य के पास आया तब राजा विक्रमादित्, धर्म व कर्म तीनों मिलकर राजा के दरबार में गए। जहां पर विक्रमादित्य ने अपना फैसला सुनाया।
(और पढ़ें:- प्रकृति में कर्मों के 8 नियम)
राजा विक्रमादित्य ने कहा कर्म यदि अकेला होता है तो उसे यह ज्ञात नहीं होता है कि क्या सही है व क्या गलत है ? धर्म के साथ होने पर ही यह फैसला किया जा सकता है कि हम जो कर्म कर रहे हैं वह हमारे लिए, समाज के लिए व देश के लिए सही है या नहीं।
इसलिए धर्म के अभाव में कर्म पूर्णतया प्रभावी नहीं होता है। इसलिए धर्म और कर्म में धर्म बड़ा है। इस प्रकार कर्म ने धर्म से माफी मांगी और फिर दोनों साथ में चले गए।
राजा विक्रमादित्य ने कहा कर्म यदि अकेला होता है तो उसे यह ज्ञात नहीं होता है कि क्या सही है व क्या गलत है ? धर्म के साथ होने पर ही यह फैसला किया जा सकता है कि हम जो कर्म कर रहे हैं वह हमारे लिए, समाज के लिए व देश के लिए सही है या नहीं।
इसलिए धर्म के अभाव में कर्म पूर्णतया प्रभावी नहीं होता है। इसलिए धर्म और कर्म में धर्म बड़ा है। इस प्रकार कर्म ने धर्म से माफी मांगी और फिर दोनों साथ में चले गए।
तो दोस्तों धर्म बढ़ा या कर्म इस पर आपको हमारी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।
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