धूनीवाले दादा जी के शिव स्वरूप होने की कहानी (Dhuniwale dadaji ke Shiv sawroop hone ki kahani)

 नमस्कार,


          दोस्तों संतों की इस धरती भारत भूमि के निमाड़ क्षेत्र के महत्वपूर्ण संत धूनीवाले दादाजी खंडवा वाले को कौन नहीं जानता है  पूर्णिमा पर दूर-दूर से लाखों लोग धूनीवाले दादा जी के दर्शन करने आते हैं परंतु मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर कौन है धूनीवाले दादाजी ? धूनीवाले दादाजी के शिव स्वरुप होने की कहानी क्या है ?

दोस्तों आज के इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।

कौन है धूनीवाले दादाजी
(Kon hai dhuniwale dadaji)


धूनीवाले दादाजी निमाड़ के प्रमुख संत हैं। धूनी वाले दादा जी को श्री श्री 1008 परमहंस केशवानंद जी महाराज के नाम से जाना जाता है। धूनी वाले दादा जी को भगवान शिव का अवतार माना गया है। इसके अलावा धूनी वाले दादाजी को रामफल वाले बाबा, धूनी वाले दादा जी, साईं खेड़ा वाले दादा जी आदि के नामों से भी जाना जाता है।

धूनीवाले दादा जी के शिव स्वरूप होने की कहानी
(Dhuniwale dadaji ke Shiv sawroop hone ki kahani)


धूनीवाले दादाजी को शिवजी का स्वरूप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे शिवजी का ही अंश थे। एक समय की बात है जब धूनीवाले दादा जी के गुरु गौरीशंकर जी महाराज अपने सभी शिष्यों व श्रद्धालुओं के साथ नर्मदा नदी के तट पर गए।




गौरीशंकर जी महाराज व धूनीवाले दादा जी की आदत थी कि वह जहां भी जाते वहां पर सभी को भोजन व प्रसादी बाटते थे और सब के साथ मिलकर खाते थे।


 
धूनीवाले दादाजी निमाड़ के प्रमुख संत हैं। धूनी वाले दादा जी को श्री श्री 1008 परमहंस केशवानंद जी महाराज के नाम से जाना जाता है। धूनी वाले दादा जी को भगवान शिव का अवतार माना गया है। इसके अलावा धूनी वाले दादाजी को रामफल वाले बाबा, धूनी वाले दादा जी, साईं खेड़ा वाले दादा जी आदि के नामों से भी जाना जाता
Dhuniwale dadaji



नर्मदा नदी के तट पर बैठे हुए गोरीशंकर जी महाराज के मन में अचानक से यह विचार आया कि इतने तप व जप के बाद भी मैं शिव जी के दर्शन नहीं कर पाया। मैं शिवजी को प्राप्त नहीं कर पाया। इसलिए अब इस जीवन का कोई मूल्य नहीं हैं।

मुझे अपने इस जीवन को यहीं इसी नर्मदा नदी के तट पर ही समाप्त कर देना चाहिए। श्री गौरीशंकर जी महाराज ने मन में ऐसा विचार किया और अपने प्राण त्यागने के लिए नर्मदा नदी की ओर बढ़ने लगे।

(और पढ़ें:-भक्त के साथ संत धूनीवाले दादाजी खंडवा वाले का चमत्कार)

उस समय धूनीवाले दादाजी अन्य भक्तों में प्रसादी का वितरण कर रहे थे। जैसे ही गौरीशंकर जी महाराज ने अपने जीवन को त्यागने के लिए नर्मदा जी की ओर कदम बढ़ाया वैसे ही आकाशवाणी हुई कि

"रुक जाओ अपने प्राण मत त्यागो तुम जिसकी तलाश कर रहे हो वह तुम्हारे साथ ही तुम्हारे शिष्यों में से कोई एक है"

आकाशवाणी सुनने पर गौरीशंकर जी महाराज ने जैसे ही अपने शिष्यों की तरफ देखा उन्हें किसी भी शिष्य में शिव जी के दर्शन नहीं हुए। जब गौरीशंकर जी महाराज ने धूनीवाले दादा जी की तरफ देखा तब उनका मुख पीछे की ओर होने की वजह से गौरी शंकर जी महाराज उन्हें नहीं देख पाए।

जब गौरीशंकर जी महाराज को किसी भी शिष्य में भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए तब पुनः उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए नर्मदा जी की ओर कदम को बढ़ाया तब पुनः आकाशवाणी हुई और कहने लगी

"यही शिष्य जो अन्य सभी भक्तों में प्रसादी का वितरण कर रहा है यही शिव स्वरूप है"

गौरीशंकर जी महाराज ने पुनः जब धूनीवाले दादाजी की ओर देखा तो उन्हें धूनीवाले दादाजी अर्थात् श्री श्री 1008 परमहंस केशवानंद जी महाराज में शिव जी के दर्शन हो गए।

तभी से माना जाता है की धूनी वाले दादा जी भगवान शिव का ही अवतार स्वरूप है

तो दोस्तों आशा करती हूं धूनीवाले दादाजी खंडवा वाले की शिव स्वरूप होने(dhuniwale dadaji khandwa wale ki shiv swaroop hone ki kahani) की हमारी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ