नमस्कार,
दोस्तों भगवान शिव जी हमारे हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक है। भगवान शिव जी के पूजन का हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में विशेष महत्व है। क्या आप जानते हैं शिव शब्द का अर्थ क्या है? क्या आप जानते हैं शिव जी के स्वरूप का गूढ़ रहस्य क्या है?![]() |
शिव जी का स्वरुप |
यदि आप नहीं जानते हैं, तो जान जाएंगे। जी हां दोस्तों आज के इस लेख में हम शिव शब्द के अर्थ और शिव जी के स्वरूप के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
शिव का अर्थ
(shiv ka arth in Hindi)
संस्कृत भाषा में शिव शब्द का अर्थ होता है कल्याणकारी या शुभकारी।
शिव अर्थात शि + व जहां पर शि से तात्पर्य पापों का नाश करने वाला और व से तात्पर्य देने वाला यानी दाता से हैं। यजुर्वेद में शिव को शांति दाता बताया गया है।
भगवान शिव की सर्वाधिक पूजा एक शिवलिंग के रूप में की जाती है। संस्कृत भाषा में लिंग का अर्थ चिन्ह होता है। इस प्रकार शिव + लिंग का अर्थ परम पुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित चिन्ह से लिया गया है। भगवान शिव को और भी कई नामों से जैसे शंकर, महादेव, भोलेनाथ आदि से संबोधित किया जाता है।
भगवान शिव जी का स्वरूप
(Bhagwan shiv ji ka swaroop in Hindi)
भगवान शिव जी का स्वरूप जितना विचित्र है उतना ही आकर्षक भी है। शिवजी अपने स्वरूप में जिन भी वस्तुओं को धारण करते उनके पीछे भी बड़े गुढ़ रहस्य छुपे होते हैं तो चलिए जानते हैं शिव जी के स्वरूप के गुढ़ रहस्यों के बारे में।
1.) शिवजी की जटाएं :—
भगवान शिव जी की लंबी, काली और घनी जटाएं अनंत अंतरिक्ष का प्रतीक है। शिवजी की जटाओं में ही चंद्रमा विराजित रहते हैं और शिवजी की जटा में से ही मां गंगा का "इस पृथ्वी लोक पर आगमन या अवतरण हुआ है।
2.) चंद्रमा :—
अपनी जटाओं में शिव जी चंद्रमा को धारण किए हुए हैं। चंद्रमा को ज्योतिष शास्त्र में मन का प्रतीक माना गया है। भगवान शिव जी का मन भी चंद्रमा की तरह भोला, निर्मल, उज्जवल व जाग्रत हैं।
3.) आंखें :—
भगवान शिव जी की तीन आंखें हैं इसलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहा जाता है। भगवान शिव की तीन आंखें तीन गुणों, तीन कालो और तीन लोको का प्रतीक हैं जो कि इस प्रकार है।
तीन गुण :– सत्व, रजत, तमस
तीन काल :– भूत, वर्तमान, भविष्य
तीन लोक :– स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल।
4.) गले में सर्पों का हार :—
भगवान शिव सदा अपने गले में सर्प का हार लपेटे रहते हैं जिसका अर्थ है कि प्रेमभाव होने पर भयंकर से भयंकर शत्रु को भी अपने गले का हार बनाया जा सकता है। सर्प तमोगुणी व संहार का कारक होता है।
5.) त्रिशूल :—
त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र हैं। जिससे वह दुष्टों का अंत करते हैं। इसके अलावा त्रिशूल भौतिक, दैविक और आधायत्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
6.) डमरु :—
शिवजी के एक हाथ में डमरू होता है, जिसे भगवान शिव तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। भगवान शिव के डमरू की डम डम से नाद उत्पन्न होता है। नाद अर्थात वह शब्द जो इस सृष्टि के आरंभ में उत्पन्न हुआ था।
7.) मुंडमाला :—
भगवान शिव जी के गले में सर्प के हार के अलावा मुंडमाला भी होती है। भगवान शिव के गले की मुंडामाला का अर्थ है कि भगवान शिव ने मृत्यु को भी अपने वश में कर रखा है।
8.) बाघचर्म का आसन और वस्त्र :—
शिव जी का आसन जिस पर बैठते हैं और वस्त्र जिन्हें वे धारण करते हैं, व्याघ्र अर्थात् बाघ की चर्म का बना हुआ होता है। बाघ हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है।
इस प्रकार उनके आसन और वस्त्र के द्वारा वह संकेत देते है कि शिव जी ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा रखा है।
9.) भस्म का लेप :—
भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म का लेप लगाते हैं तथा शिवलिंग पर भी भस्म को चढ़ाया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह संसार नश्वर है तथा एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलीन हो जाना है।
10.) वाहन वृषभ :—
भगवान शिव का वाहन वृषभ अर्थात बेल है जो हमेशा उनके साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव इस चार पैरों वाले बेल की सवारी कर यह बताना चाहते हैं कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी उनकी कृपा से ही मिलते हैं।
इस प्रकार भगवान शिवजी का स्वरूप हमें यह बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, महिमा अपरंपार है, तथा उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।
तो दोस्तों आशा करते हैं शिव जी के स्वरूप के गुढ़ रहस्य व उनके अर्थ (bhagwan shiv ji ke ghoodh rahsyo ka arth in hindi) से जुड़ा यह लेख आपको पसंद आया होगा। हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद।
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